Sunday, November 18, 2007

संस्कृते नवलेखनम्


लिखने वाले लिखते रहते हैं और पढ़ने वालों का इन्तज़ार नहीं करते । परन्तु इस बात से प्रभावित तो अवश्य होते हैं कि उनकी लिखी बात कितनी पढ़ी जा रही है । कोई इसी आशा में लिखता जाता है कि आज मेरी रचना न भी पढ़ी जाए तो क्या हुआ "कालोऽनन्तः विपुला च पृथिवी, कोई न कोई कभी न कभी तो धरती पर आएगा जो मेरी प्रतिभा को पहचानेगा ।" परन्तु एक बात तो है कि लिखने वाले को कोई तो प्रेरक तत्त्व चाहिए ही । संस्कृत में लिखने वालों के साथ यही प्रेरक की कमी है । यद्यपि कुछ पुरस्कार प्रेरक तो बनते हैं पर सबसे अच्छा प्रेरक है रचना का पढ़ा जाना । संस्कृत के लघु रचनाकारों की बात प्रकाशित नहीं हो पाती है इससे वे नया-नया लिखने को प्रोत्साहित नहीं होते ।

पर आज हमारे पास इस समस्या से मुक्ति का उपाय है- इण्टरनेट प्रकाशन । अपने ब्लॉग पर अपनी छोटी-बड़ी बातें लिखिए, जितना हो सके उतना नया और रचनात्मक लिखिए, उन्हें ज्यादा नहीं तो आपके आस-पास के लोग तो पढ़ लेंगे । और अच्छा हो जब वे उस ब्लॉगपोस्ट पर टिप्पणी (Comment) भी दें । दूसरों की प्रतिक्रिया देखकर आपका उत्साह बढ़ेगा और आप और अच्छा लिखने के किए प्रेरित होंगे । इसमें एक फायदा भी है कि इसमें आपके आसपास के लोगों की ही प्रतिक्रियाएँ होंगी, उद्भट विद्वानों की नहीं जो कृति के स्तर पर सवाल उठाएँगे । वे आपके आस-पास के लगभग आप जैसे ही लोग होंगे । आप दूसरों से ऐसे प्रोत्साहन की अपेक्षा रखें उससे पहले आवश्यक है कि आप जिनका ब्लॉग पढ़ें, तो यदि कुछ कहने लायक लगे तो उसपर टिप्पणी अवश्य दें । यह आपकी काव्य प्रतिभा को भी निखारने में सहयोगी होगा ।

4 comments:

दिवाकर मणि said...

बहुत सही बात कही तुमने !! एक लेखक/रचनाकार का सबसे बड़ा पुरस्कार उसकी रचना को पढ़कर उसपर दी गई सार्थक टिप्पणियाँ ही होती हैं. यह बात संस्कृत रचनाकार के साथ भी उतनी ही सही है जितनी कि किसी अन्य भाषा के रचनाकार पर. दूसरे को प्रेरित करने हेतु शुरुआत स्वयं से किया जाना उचित है.

सस्नेह.....

दिवाकर मिश्र said...

अहं तु वरिष्ठ-कनिष्ठ छात्रान् अपि अस्मिन् पथि आगन्तुं प्रेरयितुमिच्छामि यत् ते अधिकाधिकं रचनाः कृत्वा हिन्द्यां वा संस्कृते वा स्वप्रतिभायाः केन्द्रस्य, संस्कृतस्य साहित्यसमृद्धतायाः विकासं कुर्युः ।

Mamta Tripathi said...

युवा सदा इतिहास बनाता,
लेखक उसको लिखता है।
नवलेखन क कञ्ज हमेशा,
युवा ह्रुदय में खिलता है॥

आपके इस महान् प्रयास के साथ हम भी हैं।


वे जपें राम , तुम बनकर राम जियो रे!
ठोकर खाकर बिफरो मत, अधिक तनो रे!

devalina said...

its true. everyone needs inspiration for creation. specially to write something in sanskrit. comments are the source of inspiration for a writer. we are all with you in your journey to make sanskrit popular.
thanking you sir