Sunday, March 24, 2013

ये ज़िन्दगी तुम्हारी है


उसके किसी सवाल के जवाब में मैंने कहा
कि हमारे यहाँ शादी के मामले घर के बड़े लोग तय करते हैं
तो उसने कहा कि जिन्दगी आपकी है या पिताजी की
आपको यह जिन्दगी दुबारा तो मिलेगी नहीं
आपको अपनी जिन्दगी के अहम निर्णय खुद लेने चाहिए

वैसे वह सही कह रहा था
मैं भी अक्सर इसी हिसाब से बहुत से काम किए हैं
उनकी इच्छा के विपरीत और बल पूर्वक कही हुई बात के भी विपरीत
आज जनेवि में इसी वजह से हूँ
उनकी इच्छा के विपरीत जनेवि का फ़ार्म डाला
यद्यपि ड्राफ़्ट के रुपये उन्हीं से लिए

पर ....
पर क्या?
थोड़ा लेट हो गए यह कहने में कि यह जिन्दगी हमारी है
मत दखल दो इसमें
जीने दो हमें हमारी तरह
यह थोड़ा पहले कहना चाहिए था

जब
बीए के लिए मेरी कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं थी
पर उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवेश दिलाया
जिसके बिना जनेवि आना असम्भव था
तब कहना चाहिए था यह जिन्दगी हमारी है
मुझे पड़ा रहने दो बिना किसी निश्चय के

जब
पढ़ाई तो ठीक है थोड़ा सोशल होना सीखो
इसके लिए सामान्य सरकारी इंटर कालेज में प्रवेश दिलाया
तब कहना चाहिए था यह जिन्दगी हमारी है
नहीं होना हमें सोशल, हम अकेले रह लेंगे

जब
मैं मृत्यु के बहुत करीब था
वे हमें हर महीने जिला टीबी केन्द्र ले जाते थे
डॉक्टर खान से इलाज करवाने
तब कहना चाहिए था यह जिन्दगी हमारी है
तुम्हें कोई जरूरत नहीं हमारी चिन्ता करने की

जब
साइकिल पर चढ़ाकर हमसे अपनी बाग से मौसम का पहला आम तुड़वाया था
मैंने जीवन में पहली बार अपनी बाग में पकता आम देखा था
तब कहना चाहिए था यह जिन्दगी हमारी है
तुम अपना आम खाओ हम अपना उत्साह अपनी लगाई बाग में पूरा करेंगे

जब
रोज बैठाकर स्कूल ले जाया करते थे
उसका उत्साह भी होता था और डर भी
तब कहना चाहिए था यह जिन्दगी हमारी है
मैं पढ़ूँ या ऐसे ही रह जाऊँ किसी का क्या जाता है

जब
बार बार समझाते थे और कभी कभी डाटते थे
कि कैसे रहो तो ठीक लगोगे, स्मार्ट लगोगे, अच्छे बनोगे
तब कहना चाहिए था यह जिन्दगी हमारी है
मैं कैसा भी लगूँ किसी का क्या जाता है
इंप्रेशन तो मेरा प्रभावित होगा (हम इसमें सचमुच लापरवाह रहे)

जब
मैं दो-तीन साल का था
याद नहीं कि मुझे क्या हुआ था
पर याद हैं वे चार खुराक दवाई वाली पतली सी शीशियाँ
वे लाल, भूरी, पीली दवाएँ मेरे लिए अक्सर लाते थे
एक दवा का तो स्वाद भी अब तक याद है
तब कहना चाहिए था यह जिन्दगी हमारी है
कोई जरूरत नहीं हमारा इलाज कराने की
हम रोगी रहें या ठीक रहें किसी का क्या

मुझे याद नहीं पर नाना ने बताया था
मैं पहले साल में खूब बीमार रहता था
तब कहना चाहिए था यह जिन्दगी हमारी है
कोई जरूरत नहीं हमें बचाने की

पर अब...
सचमुच देर हो गई है यह कहने में
कि यह जिन्दगी हमारी है, सिर्फ़ हमारी
किसी का हक नहीं इस पर
किसी का हक नहीं इसमें दखल देने का
असल में अपनी जिन्दगी का हक कई टुकड़ों में बाँट चुका हूँ
जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा अब भी अपने ही पास है
इसलिए अब भी अपनी मर्जी खूब चलाता हूँ
पर ------सिर्फ़------ का अधिकार मुट्ठी से फिसल चुका है