Thursday, January 24, 2008

अन्तःसंस्थान क्रिकेट प्रतियोगिता में पहली जीत

२१ जनवरी २००८ से ३० जनवरी २००८ तक के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अन्तःसंस्थान क्रिकेट प्रतियोगिता आयोजित हो रही है । तीन समूहों में सभी संस्थानों और केन्द्रों की १० टीमों को बाँटा गया है । हमारे समूह में तीन टीमें हैं- पर्यावरण विज्ञान संस्थान, हमारा विशिष्ट संस्कृत अध्ययन केन्द्र और कला एवं सौन्दर्यशास्त्र संस्थान । कल पूर्वाह्न में पर्यावरण विज्ञान संस्थान से हुए मैच में हमारी टीम हार गई थी परन्तु आज कला एवं सौन्दर्यशास्त्र संस्थान पर हमने सात विकेट से जीत दर्ज करके पहली जीत पाई है । हमारे केन्द्र की ओर से जीतने वाली टीम का सदस्य और जीत का सहभागी होने की खुशी है ।

मैन ऑफ़ द मैच का स्थान एम ए प्रथम वर्ष के छात्र रजनीश कुमार पाण्डेय को मिला । उन्होंने २३ गेंदों पर सात चौके लगाकर ३७ रन बनाए और अविजित रहे । नीरज ने १६ (अविजित), महेन्द्र ने १४, वेद प्रकाश जी ने ४ और बलदेव ने ० रन बनाए । जीत के समय दसवाँ ओवर चल रहा था और छः ओवर बाकी थे । गेंदबाजी में महेन्द्र ने २ विकेट लिए और उनकी गेंद पर २ रन आउट हुए । पूरन ने २ विकेट लिए । बाकी चार विकेट नीरज और बलदेव ने लिए (हालाँकि यह विवरण ठीक से याद नहीं) । आलोक को यद्यपि कोई विकेट नहीं मिला परन्तु अच्छी गेंदबाजी करते हुए उन्होंने तीन ओवर में मात्र बारह रन दिए । पिछले वर्ष इन्हीं आलोक ने तीन ओवर में ही सोलह रन देकर तीन विकेट भी लिए थे ।

हमारे विशिष्ट संस्कृत अध्ययन केन्द्र की स्थापना सन् २००० में हुई । इस साल से पहले चार टूर्नामेण्ट हमारी टीम खेली है । उनमें हमें किसी में भी जीत नहीं मिल पाई थी । एम ए का पहला बैच २००३ में आया और २००३-४ के टूर्नामेण्ट में हमारी टीम पहली बार खेली थी । उसके अगले वर्ष २००४-५ में (जो हमारे बैच का पहला सत्र था) इस केन्द्र की टीम ने भाषा संस्थान (एस एल) से ड्रॉ खेला था । यही अब तक का सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड था । उस बार हमारी टीम ने १३४ रन बनाए थे । इस जीत को दर्ज करके हमारे जीतने की शुरुआत हुई है । यद्यपि सेमीफाइनल में हम नहीं पहुँच पाए हैं पर आगे यह जीत का सिलसिला जारी रखने के लिए आप सभी की शुभकामनाएँ हमारे साथ हैं ।

Wednesday, January 9, 2008

गुफान्वेषणक्रमे प्रथमकन्दराप्राप्तिः

वयं कन्दरान्वेषणोत्सुकाः जनैः जनैः पृष्टवन्तः कुत्र कन्दराः, कुतः केन, मार्गेण, कस्यां दिशि ताः प्राप्तव्याः इति, क्वचित् क्वचित् उत्तरं प्राप्यते स्म । कतिपयदिनेषु यावत् न कोऽपि प्राप्तः यः कथयेत् यत् अहं तत्र गतवान्, तासां मार्गं जानामि इत्यादिः । कोऽपि कथयेत् संस्कृतकेन्द्रस्ये पश्च ताः सन्ति, कोऽपि कथयेत् अकादमिक-स्टॉफकालेजस्य पार्श्वात् मार्गः गच्छति । २००४ ईसवीयसत्रस्य समाप्तौ लखनऊविश्वविद्यालयस्य द्वौ सहपाठिनौ अस्माकं पार्श्वे आयातौ । एकदा तौ द्वौ- विवेकः हनुमानप्रसादपाण्डेयः च, सुरजीतः अहं च निश्चयं कृत्वा दक्षिणवने कन्दरान्वेषणाय प्रस्थिताः । तत्र गच्छन्तः वयं विशालाः विशालाः शिलाः दृष्ट्वा तत्र गुफा सम्भवति इति अनुमीय अनुमीय अत्र तत्र अपश्याम । एकत्र गत्वा लघुकूपाकारः गह्वरः प्राप्तः । मम तु प्रसन्नता आशा च अत्यधिकं वर्द्धिता । तं लघुगह्वरं दृष्ट्वा हनुमानप्रसादः उपेक्षता अवदत् "ई गुफा ह ?" तस्य उपेक्षा मां न अरुचत् । मन्ये अत्र अजन्ता-एलोरा इव विशालाः कन्दराः न सन्ति, कथं कोऽपि मम विश्वविद्यालयस्य लघुकन्दरान् उपेक्ष्यति ? विवेकः अरुचिं स्रस्तं चानुभवति स्म । तदा तत्र त्रयः लघुबालकाः वने एव आमोदं कुर्वन् तत्र आगताः । ते अबोधयन् यत् अत्र कन्दराः सन्ति याः कक्षपरिमाणा अपि सन्ति । तेषां वचनं श्रुत्वा हनुमानप्रसादः विश्वासमकरोत् यत् अत्र सत्यमेव कन्दराः सन्ति । ते बालकाः तत्र समीपमेव एकां कन्दरां अस्मान् प्रादर्शयन् तस्यां प्राविशन् च । विवेकस्य अरुचिं दृष्ट्वा अन्यस्मिन् दिने विस्तरेण गुफान्वेषणं करिष्याम इति निश्चीय वयं न्यवर्तयम् ।

अन्यस्मिन् दिने किं अभवत्......... अग्रे कथयिष्यामः........नमस्कारः.......