Tuesday, December 11, 2018

राहु और केतु से ग्रहण कैसे लगता है

बहुत पहले यही समझा जाता था कि राहु और केतु में से कोई जब अमावस्या के दिन सूर्य के पास पहुँचता है तो सूर्य को निगल लेता है और इस तरह सूर्य ग्रहण होता है । वैसे ही राहु केतु में से कोई पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा के पास पहुँचता है तो चन्द्रमा को निगल लेता है, इस प्रकार चन्द्र ग्रहण होता है ।

सूर्य, चन्द्रमा, राहु और केतु भी ग्रह हैं


विज्ञान ने प्रगति की तो पता चला कि राहु और केतु होते ही नहीं हैं, और सूर्य और चन्द्रमा ग्रह ही नहीं हैं । इस प्रकार ज्योतिष में गिने जाने वाले नौ ग्रहों में से चार तो ग्रह हैं ही नहीं । जो ग्रहण लगता है तो सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा के एक सीध में आ जाने से होता है । सूर्य ग्रहण में सूर्य पर चन्द्रमा की छाया होती है और चन्द्रग्रहण में चन्द्रमा पर पृथ्वी की छाया ।

यदि हम कहें कि सूर्य, चन्द्रमा, राहु और केतु भी ग्रह हैं, और सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण राहु और केतु के कारण लगते हैं तो? आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी? आप में से अधिकतर ने प्रतिक्रिया देने में जल्दी कर दी । उससे पहले यह कहने के पीछे आधार क्या है - यह जानना चाहिए ।

पहले बात करते हैं सूर्य आदि के ग्रह होने के बारे में । वे निश्चय ही उस अर्थ में ग्रह नहीं हैं जो planet का अनुवाद है । मोटे तौर पर planet या ग्रह वह आकाशीय पिण्ड है जो सूर्य की परिक्रमा कर रहा हो । परन्तु ग्रह शब्द के और भी अर्थ हैं । किसी शब्द का सही अर्थ वह होता है जो उस विद्या के सिस्टम में प्रयोग किया जाता है । पकड़ने के अर्थ वाली ग्रह् धातु से बने ग्रह शब्द का अर्थ है पकड़े रहने वाला । इस अर्थ में सूर्य आदि ग्रह हैं जो आपस में एक दूसरे को पकड़े रहते हैं और सभी की गति सभी से प्रभावित होती है । साथ ही ग्रह शब्द इन नौ के अर्थ में रूढ़ भी है । ग्रह शब्द योगरूढ़ है ।

राहु केतु से ग्रहण? इस जमाने में भी?


अब दूसरी बात पर थोड़ा विस्तार से चर्चा करते हैं । सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण होने का कारण सूर्य चन्द्रमा और पृथ्वी के एक सीध में आ जाने के कारण होता है - यह सत्य है । साथ ही यह भी सत्य है कि दोनों प्रकार के ग्रहण राहु और केतु के कारण भी पड़ता है । इसे गणना सहित यहाँ दिखाने वाले हैं ।


ऊपर के चित्र में पृथ्वी के चारों ओर चन्द्रमा का परिक्रमण दिखाया गया है । इसमें जो क्षैतिय या horizontal लाल रेखा है वह सौरमण्डल का इक्लिप्टिक समतल (Ecliptic) को बताती है । नीले रंग का दीर्घवृत चन्द्रमा की कक्षा को बताता है । चन्द्रमा की कक्षा इक्लिप्टिक पर नहीं है बल्कि थोड़ी टेढ़ी है । यह टेढ़ापन या झुकाव पाँच अंश () है । इसकी जानकारी के लिए सर्च करें "angle of moon orbit" । यह कक्षा जहाँ इक्लिप्टिक के नीचे से ऊपर या उत्तर की ओर जाती है, वह बिन्दु राहु है । इसे नवग्रह के विकीपीडिया लेख पर Lunar ascending node कहा गया है और वास्तु इंटरनेशनल की वेबसाइट (http://www.vaastuinternational.com/astrology2.html) पर Northern Lunar node कहा गया है । इसका वर्णन इस प्रकार किया गया है -

Rahu is the point in the zodiac where the paths of sun and moon cross.

इसी प्रकार चन्द्रमा की कक्षा जहाँ इक्लिप्टिक समतल के ऊपर या उत्तर से नीचे अर्थात् दक्षिण की ओर जाती है वह बिन्दु केतु है । राहु और केतु पृथ्वी के सापेक्ष 180° दूर अर्थात् ठीक विपरीत दिशा में होते हैं । दोनों सूर्य और चन्द्र के मार्गों के काटने के बिन्दु कहें या राहु और केतु कहें अथवा lunar orbit intersection points on Ecliptic कहें या Lunar nodes, ये 3'11" (ज्योतिष में तीन कला ग्यारह विकला, तथा गणित में तीन मिनट ग्यारह सेकेंड) की गति से पूर्व से पश्चिम की ओर घूमते रहते हैं । कला या मिनट एक अंश या डिग्री का साठवाँ हिस्सा होता है, विकला या सेकेंड उसका भी साठवाँ हिस्सा होता है ।

यह वर्णन ग्रहों की वास्तविक गतियों के अनुसार नहीं बल्कि पृथ्वी के सापेक्ष तथा दिखने (appearance) के अनुसार है तथा सभी दूरियाँ कोणीय इकाई (angular distance, angular diameter etc.) में हैं । कोणीय दूरी के बारे में यहाँ पढ़ें (https://en.wikipedia.org/wiki/Angular_diameter) । चन्द्रमा सूर्य से बहुत छोटा है पर कभी कभी कोणीय व्यास (angular diameter) के संदर्भ में सूर्य से बड़ा भी हो जाता है ।

जब अमावस्या के समाप्त होने के समय सूर्य के निकट राहु या केतु में से कोई आ जाता है, तभी चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के ठीक बीच में आता है और सूर्य ग्रहण लगता है । अन्यथा चन्द्रमा सूर्य को उसके उत्तर या दक्षिण से पार कर जाता है । गणना द्वारा दिखाने के लिए इक्कीसवीं सदी के सबसे लम्बे चन्द्र ग्रहण का उदाहरण लेते हैं जो 27 जुलाई 2018 की रात को पड़ा था । इस गणना के लिए पहले निम्नलिखित जानकारी जुटानी होगी ।

पहले आवश्यक जानकारी जुटाते हैं 


सूर्य और चन्द्र के मार्गों के काटने का कोण (Angle of lunar orbit on Ecliptic) = 5°
इक्कीसवी सदी के सबसे बड़े चन्द्र ग्रहण की तारीख = 27-28 जुलाई 2018 
चन्द्र ग्रहण की अवधि = 23:54:26 on July 27 to 3:48:59 on July 28
(स्रोत https://www.drikpanchang.com/eclipse/lunar-eclipse-date-time-duration.html?geoname-id=1261481&date=27/07/2018)
27 जुलाई 2018 को पूर्णिमा के समाप्त होने का समय = 1:50 AM on July 28
(स्रोत https://www.drikpanchang.com/panchang/day-panchang.html पर जाएँ और दिनांक बदलें change date लिंक से, अथवा सीधे इस लिंक पर जाएँ https://www.drikpanchang.com/panchang/day-panchang.html?date=27/07/2018)
27-28 जुलाई 2018 को पूर्णिमा समाप्त होने के समय सूर्य, चन्द्र, राहु और केतु की ग्रह दशा
(https://www.drikpanchang.com/tables/planetary-positions-sidereal.html लिंक पर जाएँ और दिनांक और समय चुनें - 28/07/2018 और 01:50:04 बदलें अथवा सीधे इस लिंक से देखें https://www.drikpanchang.com/tables/planetary-positions-sidereal.html?date=28/07/2018&time=01:50:04)

ग्रह दशा के हिसाब से चन्द्रमा सूर्य के विपरीत बिन्दु को 01:50:03 से 01:50:04 के बीच में पार करता है, अतः हम उस समय की ग्रह दशा देखेंगे । राशि नाम को अंक में बदल दिया गया है, जैसे सूर्य कर्क (Cancer) राशि में है जो चौथी राशि है, अर्थात् वह तीन राशियाँ पार कर चुका है ।

सूर्य = 3|10|37|29.47 (राशि अंश कला विकला के क्रम में - zodiac, degree, minute second)
चन्द्र = 9|10|37|29.65
राहु = 3|11|46|01.18
केतु = 9|11|46|01.18

सूर्य के बिम्ब का आकार अर्थात् कोणीय व्यास (angular diameter of solar disc) = 31'27" - 32'32"
चन्द्र के बिम्ब का आकार अर्थात् कोणीय व्यास (angular diameter of lunar disc) = 29'20" - 34'06"
(स्रोत - https://en.wikipedia.org/wiki/Angular_diameter)
चन्द्रमा की दूरी पर पृथ्वी की छाया का कोणीय व्यास (angular diameter of shadow of earth at distance of moon) = चन्द्रमा के व्यास का 2.6 गुना = 76'15" - 88'40"
(स्रोत - http://www.astronomy.ohio-state.edu/~pogge/Ast161/Unit2/eclipses.html)



अब गणना करते हैं 


अब गणना करते हैं । पूर्णिमा समाप्ति के समय ग्रह दशा (planetary position in zodiac) देखें तो सूर्य और राहु पास पास हैं तथा चन्द्र और केतु पास पास हैं । परन्तु सूर्य से राहु तथा चन्द्र से केतु एक अंश से अधिक की दूरी पर है, तो फिर ग्रहण कैसे हो गया?
सूर्य - राहु = 3|10|37|29.47 - 3|11|46|01.18 = - 0|01|08|31.71
चन्द्र - केतु = 9|10|37|29.65 - 9|11|46|01.18 = - 0|01|08|31.53

इतना अन्तर होते हुए भी ग्रहण हो सकता है । सूर्य चन्द्र से राहु केतु की दशा का पूर्णतया साम्य होना केवल पूर्ण सूर्य ग्रहण या पूर्ण चन्द्र ग्रहण के लिए आवश्यक है । आंशिक सूर्य ग्रहण के लिए चन्द्र के बिम्ब का सूर्य के बिम्ब के ऊपर आना राहु केतु से थोड़ी दूर रहने पर भी हो सकता है । आंशिक चन्द्र ग्रहण के लिए चन्द्र के बिम्ब के ऊपर पृथ्वी की छाया का स्पर्श करना भी राहु और केतु के थोड़ी दूर रहने पर भी हो सकता है । अब देखते हैं कि पूर्णिमा या अमावस्या की समाप्ति के समय सूर्य और चन्द्र से अधिकतम कितनी दूर राहु या केतु को होना चाहिए जिससे कि ग्रहण लग सके । तो पहले सूर्य ग्रहण की आवश्यकता की गणना करते हैं ।

सूर्य ग्रहण की न्यूनतम आवश्यकता


अमावस्या की समाप्ति पर सूर्य ग्रहण के लिए आवश्यक सूर्य से राहु या केतु की अधिकतम दूरी की दशा में सूर्य और चन्द्र के बिम्ब एक दूसरे को स्पर्श मात्र कर रहे होंगे । उस दशा में सूर्य का केन्द्र, चन्द्र का केन्द्र और उनके मार्ग के काटने का बिन्दु (राहु या केतु अथवा intersection point of Lunar orbit and Ecliptic) मिलकर एक त्रिकोण बनाएँगे । यहाँ सभी दूरियों की इकाई arctan है जो डिग्री, मिनट और सेकेंड में व्यक्त की गई हैं । त्रिकोण में मार्ग काटने के बिन्दु पर पाँच डिग्री का कोण है । पाँच डिग्री के कोण को दो भागों में बाँटने से त्रिकोण भी दो भागों में बँट जाएगा जो एक समकोण त्रिभुज (right angled triangle) होगा । अब इसमें दूरियों को त्रिकोणमिति (Trigonometry) से नाप सकते हैं । राहु/केतु बिन्दु पर कोण ढाई डिग्री का होगा । उसके सामने की भुजा सूर्य और चन्द्र के बिम्ब की कोणीय त्रिज्या का औसत होगी (angle of the triangle on Lunar node will be 2.5 degree, and the side of triangle opposite to this angle will be average of the angular radii of Solar and Lunar discs) । इस प्रकार राहु या केतु से सूर्य की दूरी होगी

सूर्य बिम्ब का औसत कोणीय व्यास = 32' (32 minutes); त्रिज्या (radius) = 16'
चन्द्र बिम्ब का औसत कोणीय व्यास = 31'30" (31.5 minutes); त्रिज्या (radius) = 15'45"
सूर्य और चन्द्र की कोणीय त्रिज्या का औसत = 31'45" /2 = 15'52" (15.87 minutes)
सूर्य से राहु/केतु की अपेक्षित अधिकतम दूरी = 15.87 x cot 2.5 = 15.87 x 22.9 = 363.423 minutes = 6 degree 3.4'

अर्थात् यदि अमावस्या समाप्ति के समय सूर्य से राहु या केतु की दूरी 6 अंश से अधिक भी हो तो भी सूर्य ग्रहण हो सकता है ।

चन्द्र ग्रहण की न्यूनतम आवश्यकता


अब चन्द्र ग्रहण की न्यूनतम आवश्यकता की गणना करते हैं । इसकी गणना भी पहले की तरह होगी । चन्द्र ग्रहण पूर्णिमा की समाप्ति पर लगता है इसलिए इस गणना में सूर्य के स्थान पर पृथ्वी की छाया होगी जो सूर्य के स्थिति से ठीक 180 अंश की दूरी पर होगी । इस प्रकार चन्द्र ग्रहण की न्यूनतम आवश्यकता होगी कि पूर्णिमा की समाप्ति पर राहु या केतु (Lunar node) से चन्द्र अधिकतम उतनी दूरी पर हो कि चन्द्र बिम्ब और पृथ्वी की छाया एक दूसरे को छू रहे हों । इस दशा में भी 5 डिग्री कोण वाला त्रिकोण बनेगा जिसमें 5 डिग्री कोण के सामने की भुजा पर चन्द्रमा की त्रिज्या और पृथ्वी की छाया की त्रिज्या होगी | 5 डिग्री कोण को आधा करने पर बने त्रिकोण में 2.5 डिग्री कोण के सामने वाली भुजा पृथ्वी की छाया और चन्द्र बिम्ब की त्रिज्या के औसत के बराबर होगी (angle of the triangle on Lunar node will be 2.5 degree, and the side of triangle opposite to this angle will be average of the angular radii of shadow of the Earth and Lunar disc) । इस प्रकार राहु या केतु से चन्द्रमा की दूरी होगी

पृथ्वी की छाया का औसत कोणीय व्यास = 82'30 (32.5 minutes); त्रिज्या (radius) = 41'15"
चन्द्र बिम्ब का औसत कोणीय व्यास = 31'30" (31.5 minutes); त्रिज्या (radius) = 15'45"
पृथ्वी की छाया और चन्द्र की कोणीय त्रिज्या का औसत = 57' / 2 = 28'30" (28.5 minutes)
चन्द्रमा से राहु या केतु की अपेक्षित अधिकतम दूरी = 28.5 x cot 2.5 = 28.5 x 22.9 = 652.65 minutes = 10 degree 52.65'

अर्थात् यदि  समाप्ति के समय चन्द्रमा से राहु या केतु की दूरी लगभग 11 अंश भी हो तो भी चन्द्र ग्रहण हो सकता है । उदाहरण में लिए गए 27 जुलाई 2018 के ग्रहण में पूर्णिमा समाप्ति के समय चन्द्रमा से केतु की दूरी मात्र 1 अंश 8 कला (मिनट) 32 विकला (सेकेंड) ही थी ।