Tuesday, July 10, 2007

साधना


सत्य है नित ही प्रगति हित है जरूरी साधना
रख तू अनुशासन स्वयं पर पर तू खुद को बांध ना
पथ पे कुछ बढ़ने से पहले मन को अपने दृढ़ करो
मन में जो हो साध ना तो क्या करेगी साधना ?

है नहीं पर्याय अनुशासन दमन का अपने ही
दमन ख़ुद का करके नष्ट करो न अपने सपने ही
भ्रम में हैं वे लोग जो यम-नियम को समझे दमन
दबने को वे नहीं कहते कहते बनने को सुजन -सूर्यांशी

2 comments:

दिवाकर मणि said...

"मन में जो हो साध ना तो क्या करेगी साधना ?"- बिल्कुल सही कहा गया है । लक्ष्यविहीन व्यक्ति कभी भी समझ नहीं पाता कि उसके लिए क्या करणीय है, क्या नहीं ?

Mamta Tripathi said...

साधना हो निरन्तर, साध हर पूरी हो।
साधना है उत्तुंग हिमालय, गहरा सागर, और विस्तृत आकाश..........भगवान करे आपकी हर साधना पूरी हो.......................