Saturday, June 12, 2010

कोकाकोला और एंडरसन

आमिर खान कहा करते थे - मुझे विश्वास है कोकाकोला पूरी तरह सुरक्षित है । पहले मुझे उनके इस वक्तव्य पर गुस्सा आया, फिर मैं उससे सहमत होने लगा । हाँ कोकाकोला पूरी तरह सुरक्षित है, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है । असुरक्षित तो सुनीता नारायण, बाबा रामदेव तथा उनका विरोध करने वाली सरकारी और गैरसरकारी संस्थाएँ हैं, जिनपर सच बोलने के लिए भी पाबन्दी लगाई जा सकती है । इसके समर्थन में मुझे यही उदाहरण याद आया था जिसे आज लोग बहुत अच्छी तरह जानते हैं - भोपाल गैस काण्ड के आरोपी का किसी ने क्या बिगाड़ लिया । एक तो यहाँ की सरकार ही उसे सुरक्षा देती है, अगर वह कुछ करना भी चाहे तो आरोपित के पीछे उसके देश की सरकार का हाथ है ।

ऐसा नहीं है कि मौका देखकर अभी बात बना रहा हूँ । तब भी मेरे मन में यही उदाहरण आया था, पर मैं सोच कर रह जाता था कि कहूँगा भी तो समझ में किसे आएगा? मुझे बात की जानकारी थी पर उससे जुड़े तथ्यों की नहीं । पर आज कोई भी इसे आसानी से समझेगा ।

9 comments:

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

दिवाकर मिश्र said...

यहाँ मुझे दिख रहा है कि लोग विषय पर टिप्पणी नहीं देना चाह रहे हैं बल्कि अधिकतर तो अपना परिचय (या प्रचार) ही देना चाह रहे हैं । बस मुझसे तुरन्त ऊपर की टिप्पणी को छोड़कर । मुझे अच्छा लगता यदि पोस्ट के विषय पर कुछ कहते और बात को कुछ आगे बढ़ाते । और मेरा यह ब्लॉग नया नहीं है । स्वागत किया यह तो अच्छी बात है पर यह तो देखिए कौन किसका स्वागत कर रहा है । मैं ब्लॉगिंग में ई-गुरु से २० महीने पहले से हूँ । आपने अपनी सहायता का प्रस्ताव दिया पर खुद यह जानने की कोशिश नहीं की कि मैं कब से हूँ । और दूसरे ब्लॉग निमन्त्रक से २१ महीने पहले से ब्लॉगिंग कर रहा हूँ । आप मुझे ब्लॉग पढ़ने की सलाह दे रहे हैं, थोड़ा मेरे ब्लॉग पर भी पढ़ने की कोशिश की होती (मैं दावा नहीं करता कि बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी मेरे पास है) तो दिख जाता कि मैं उनसे बहुत पहले से ब्लॉगिंग कर रहा हूँ, नौसिखिया नहीं हूँ । भले ही नियमितता नहीं बनाए रख सका । तीसरी टिप्पणी पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है, वे मुझसे काफ़ी बुजुर्ग हैं और वह टिप्पणी सीधे सीधे अपना प्रचार करती नहीं दिखती । उनसे बस यह शिकायत है कि टिप्पणी की तो आपको केवल "एक ब्लॉग है" दिखा, जिस पोस्ट पर टिप्पणी की उसमें क्या लिखा है, उस पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया । कुछ विषय पर लिखते तो बात आगे बढ़ती ।

मैं बातें तीखी कह गया, उसका कारण यह था कि ३ टिप्पणियाँ देखकर मैंने सोचा कि मेरी बात पर किसी ने टिप्पणी की है, अन्दर आकर देखता हूँ तो कोई विषय पर नहीं कह रहा, उनमें से २ तो सीधा सीधा अपना प्रचार कर रहे हैं ।

अब भी अगर आप तीनों विषय पर कुछ कहें तो मुझे खुशी होगी ।

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

आपको हम उत्तर देते हैं.
बिजली की समस्या है ज़रा.....

Unknown said...

इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि आप एक संवेदनशील व्यक्ति हैं और लोगों की संवेदनाओं को जगाना चाहते हैं, लेकिन लोग जागते हुए सो रहे हैं। संवेदनाओं को जानबूझकर दबाये बैठे हैं। ऐसे में यह कार्य आसान नहीं है। बात केवल अमरीकी नागरिक एण्डरसन की ही नहीं है। हमारे अपने देश में हजारों एण्डरसन हैं। अधिकतर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर भ्रष्टाचार के गर्त में डूबे हुए हैं और फिर भी वे ही इस देश के वर्तमान और भविष्य के नीति-नियन्ता हैं। एक आम व्यक्ति किसी महिला के साथ छेडछाड करता है, तो उसे तत्काल पुलिस बन्द कर देती है, जबकि यही अपराध एक अफसर करता है, तो उसकी विभागीय जाँच होती है। एक देश में दो कानून, कहाँ है समानता का अधिकार? जिस प्रकार से इस देश में आईएएस एवं आईपीएस और इनके छोटे भाई महामानव बने बैठे हैं, जो कुछ भी करके साफ बच निकलते हैं और इस देश के लोग तथा यहाँ का मीडिया चुपचाप तमाशा देखता रहता है। उसी प्रकार से अमरीका के लोग संसार के महामानव हैं, जो किसी के भी विरुद्ध कुछ भी करके शान से मूछों पर ताव देते रहते हैं। जब एण्डरसन को छोडा गया और जब सुप्रीम कोर्ट का मनमाना फैंसला आया था, तब इस देश का मीडिया कहाँ था? सब नाटक कर रहे हैं। अपने अपने न्यूज चैनल या समाचार पत्रों का प्रचार-प्रसार करने में लगे हुए हैं। अन्यथा कौन नहीं जानता कि पेड न्यूज के जमाने में इंसाफ की बात करना मूर्खता की बात है। फिर भी अनेक आप जैसे संवेदनशील लोग हैं, जो अभी भी दिल से अपनी बात कहते हैं और कहनी भी चाहिये। परन्तु फिर से मैं यही कहँूगा कि इस देश के एण्डरसनों पर तो कार्यवाही कर लो बाद में अमरीका से निपटने की बात करना। सरेआम रिश्वत लेते पकडे जाने वालों के विरुद्ध भी मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं देने वाली सरकार और सरकारों को चलाने वाले मोटी चमडी के काले अंग्रेजों के कारण ही एण्डरसन पैदा होते हैं और इन्हीं के चलते छूट भी जाते हैं या छोड दिये जाते हैं। राज नेताओं के विरुद्घ तो आम जनता कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि वे तो अपने आपको पवित्र पापी की संज्ञा से सम्मानित करवा चुके हैं, लेकिन कम से कम लोक सेवक (जनता के नौकर) की ओट में लोक स्वामी बन बैठे जनता के नौकरों (प्रशासनिक अफसरों) के विरुद्ध तो जनता को एकजुट होकर आवाज उठानी चाहिये।
दिवाकर मिश्र जी अपनी बात बेहतर तरीके से प्रस्तुत करने और टिप्पणीकारों पर बेवाक टिप्पणी करने के लिये साधुवाद एवं शुभकामनाएँ।-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश, सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है। इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, या सरकार या अन्य बाहरी किसी भी व्यक्ति से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में 4328 आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सत्रह राज्यों में सेवारत हैं।)। फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666E E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

दिवाकर मिश्र said...

धन्यवाद डॉ. पुरुषोत्तम जी । इसके लिए नहीं कि आपने टिप्पणी की, बल्कि इसके लिए कि आपने सार्थक टिप्पणी की और विषय पर और भी गहराई और स्पष्टता से बात की है । आपकी एक और बात हमें अच्छी लगी कि व्यर्थ की टिप्पणियों पर मेरे रुख से आप सहमत हैं ।

लोग अपनी अन्तरात्मा की आवाज को दबाए बैठे रहते हैं इस डर से कि इसका असर नहीं होगा, और अगर असर होगा तो जो लोग उससे प्रभावित होंगे वे समस्याएँ खड़ी करने लगेंगे । और सबको अपनी सामाजिक ज़िन्दगी चलाने के साथ साथ एक निजी जिन्दगी भी चलानी होती है । यह डर सही तो है पर उतना नहीं जितना हौवा इसका बना रहता है । आप कुछ भी करें, उसका असर तो होगा ही, भले ही सफल न हों । कई बार वह छोटा सा असर ही निर्णायक बन जाता है । उस निर्णायक असर के लिए यह जरूरी नहीं कि वह बहुत बड़ा असर हो या फ़िर कई लोग साथ में हों । विरोध करने वाली बात हो तो आप उतना विरोध करिए जितना आपके वश में है । कोई (मुझ जैसा) यह नहीं कहता कि बन्दूक लेकर मैदान में उतर आइए (कई लोग ऐसा कहते भी हैं) । छोटा काम - जैसे नाव पर एक पत्थर फेंकना - नाव को डुबा तो नहीं सकता, पर डिगा तो सकता ही है । और इस हिलने में कोई निर्णायक बात भी हो सकती है । यह केवल मुहावरा नहीं है, इसका मैंने अनुभव भी किया है ।

अभी कल ही एक अख़बार में निकला था - हादसा जो होते होते बच गया । कुछ ऐसा ही शीर्षक था । उसमें परमाणु समझौते के बारे में पेश होने वाले बिल के बारे में बताया गया था । मूल विधेयक में जिसकी गलती से दुर्घटना हो, उसकी जवाबदेही तय करने की बात थी । पेश हुए बिल से यह बात हटा दी गई थी । जाहिर है विदेशी कम्पनियों के दबाव में । फिर विपक्षी दलों के विरोध के कारण उसे फिरसे शामिल करन पड़ा । विरोध करने पर असर तो होता ही है ।

Anonymous said...

well, sir.. Why u r bothering about anderson. It is non of your bussiness .but i must admit that your writing style is superb...by the way who is this anderson?

shashikantsuman said...

आज की पूरी तरह सड़ चुकी व्यवस्था का चित्रण किया है आपने। सच है कि ये समझ में किसे आएगा?

http://jnu.feedcluster.com/

दिवाकर मिश्र said...

वीरेन्द्र जी, मैंने बहुत पहले से मन में रही बात को इस समय इसलिए कहा है कि इस समय एंडरसन को और उससे जुड़ी घटना को लोग अच्छी तरह जानते हैं । ये यूनियन कार्बाइड के पूर्व अध्यक्ष हैं जिसके संयंत्र से घातक गैस के रिसाव से हजारों लोग तभी मर गए थे और जो जीवित बचे, उनमें भी बहुत से अपंग हो गए । उस घातक रसायन का असर उसके बाद पैदा होने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ा ।

उस समय एंडरसन बिलकुल निःशंक था कि कोई उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता । जब वह भारत आया तो उसकी और उसके दो साथियों की गिरफ़्तारी हो गई तो उन्हें आश्चर्य हुआ । उन्हें और अमेरिकी दूतावास को आशा ही नहीं थी कि उसे बन्दी बनाया जा सकता है ।

उसे सुरक्षित बाहर निकालने में भारत सरकार ने कई स्तरों पर सहायता की । जब उसपर मुकदमा चला तो अमेरिकी सरकार का दबाव बनाया गया कि मुआवजा लेकर केस रफ़ा-दफ़ा किया जाए । एक बार उससे मुआवजा लेकर छोड़ा भी जा चुका है । जब २६ साल बाद मुकदमे का फ़ैसला आया तो भी उसे दो साल की कैद की सजा सुनाई गई, और उसे भी भुगतने के लिए उसे भारत लाया भी जा सकेगा या नहीं, कौन जाने ? कोकाकोला भी उसी देश की कम्पनी है । भला कोकाकोला किस दृष्टि से असुरक्षित है?

आप सबका प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद

Anjit said...

ekdam sahmat aapse diwakarji