Sunday, June 27, 2010

किसे हिन्दू कहेंगे

इस पोस्ट में मेरा मौलिक लेख न होकर उद्धृत लेख है यद्यपि अधिकतर बातें मेरी हैं । यहाँ पर फ़ेसबुक पर स्वप्निल सोनी की एक पोस्ट पर की गई मेरी तीन टिप्पणियों का संकलन है । वह मूल पोस्ट इस प्रकार थी ---

जो संगठन कभी हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बने थे उनका उद्देश्य मुसलमानों से हिन्दुओ की रक्षा करना था आज वो अपने आप को हिन्दू नहीं मानते !जैन अपने आप को और ऐसे तमाम भगोड़े संगठन हिन्दू धर्म से निकले है आज का दलित अपने आप को हिन्दू कहने से कतरा रहा है वह मनुवादी कह कर आलोचना कर रहा है.कई राज्यों में हिन्दू नाम मात्र का है.... सवाल ये है कि फिर हिन्दू बचा कहा किसे हिन्दु कहेंगे ?

इस पर मेरी की हुई तीन टिप्पणियाँ इस प्रकार हैं ---

पहली टिप्पणी

अब इस विषय पर अपनी बात रख रहा हूँ । हिन्दू धर्म के लोग एक फ़ैक्ट्री से निकले हुए उत्पाद नहीं हैं जो पूरी तरह एक से हों । उनमें थोड़ी नहीं बहुत भिन्नता होती है और वे उन भिन्नताओं के बावजूद अपने में से एक देख सकते हैं । आज भी जो विभिन्नताओं के बावजूद सबको अपने में शामिल कर सकने की भावना रखता है, अपने को हिन्दू मानता है । इसीलिए, जाति के आधार पर भेदभाव करने वाला भी उन सभी जातियों को हिन्दू समझता है ।

अब बात यह कि दूसरे संगठन अलग कैसे हो गए । जो केवल एक प्रकार में अपने को सीमित मानने लगते हैं, वे अपने को हिन्दू से अलग मानने लगते हैं । हिन्दुओं में से युद्धवीर लोगों ने धर्म की रक्षा का संकल्प लिया, पर उन्हें जब आम हिन्दू अपने से कम वीर, कम उत्साही, लड़ाई में बराबरी से भाग न लेने वाला दिखने लगा, वे अपने आप को अलग समझने लगे ।

दूसरी तरफ़, हिन्दू धर्म की बीमारियों को दूर करने के लिए (निरर्थक हिंसा, असमानता आदि) जो संगठन बने, वे जब अपने को अधिक अहिंसक और सुशील समझने लगे तो आम हिन्दू उन्हें बड़ा बिगड़ैल दिखने लगा, तो उसे भी सुधारने के बजाय अपने को उनसे अलग समझना ठीक समझा ।रही बातदलितों के अपने आप को हिन्दू न समझने की, तो ऐसा वे ही करते हैं जो अपने को बौद्ध धर्म में दीक्षित मान लेते हैं । पर इससे क्या फ़र्क पड़ता है, बौद्ध और जैन धर्म संन्यासी धर्म हैं, उनमें जाति नहीं होती । हिन्दू धर्म में भी संन्यासी की जाति नहीं रह जाती । वे कहने को धर्म परिवर्तन करते हैं कि जातिवादी धर्म को छोड़कर जातिविहीन धर्म को अपना रहे हैं, पर वहाँ भी अपने को जाति से ही पहचानते हैं, जाति नहीं छूटती ।

मेरे इस विचार से बात यह निकली कि हिंसा हो या अहिंसा, किसी भी पक्ष में जो अतिवादी हो जाता है, वह हिन्दू धर्म से अपने को अलग समझने लगता है । जो समावेशवादी होता है, वह हिन्दू रहता है, अपने को हिन्दू कहता है । मैं अपने को हिन्दू समझता हूँ, सिकुलर हिन्दुओं को भी हिन्दू समझता हूँ, कट्टर हिन्दुओं को भी । वे छद्म धर्मनिरपेक्ष जो हिन्दुत्व की गर्दन दबाकर ही अपनी धर्मनिरपेक्षता का सबूत दे पाते हैं और जो कट्टरवादी घिनौनी करतूतों से हिन्दू धर्म को बदनाम करते हैं, उन्हें मैं हिन्दू के नाम पर कलंक मानता हूँ पर उनके हिन्दू होने से इनकार नहीं करता, उन्हें भी हिन्दू मानता हूँ । मैं हिन्दू हूँ ।


दूसरी टिप्पणी

अब ऊपर भटके हुए विषय के बारे में भी कुछ । ..... जी की उस टिप्पणी को मैंने नहीं पढ़ा जिस पर अत्यधिक विवाद हुआ पर लोगों की टिप्पणियों को देखकर लगता है कि वह आपत्तिजनक रही होगी । संकेतॊ से जैसा अनुमान होता है, मेरी ओर से भी वह निन्दनीय है । इनका रवैया भी बहुत उत्तेजक है जो मेरे जैसे स्वभाव वाले से बहुत दूर है । पर जहाँ से बात शुरू हुई थी --- जो संगठन --- ऐसे ही उबलते खून वाले लोगों से बना था । उसमें अहिंसक संन्यासी नहीं थे बल्कि धर्म और देश के लिए मर मिटने के जुनून वाले लोग थे । धर्म की रक्षा करने वाले संगठन ऐसे लोगों से नहीं बर सकते जो एक वीर राजा और उसकी सेना को भी अहिंसक संन्यासी बना दे और लड़ाई से बचने के लिए आततायियों से सन्धि करने की सलाह दे ।

ऐसे कट्टरवादियों की वजह से हमारे धर्म की बदनामी होती है, लेकिन हमें ऐसा बनने की जरूरत इसलिए नहीं महसूस होती कि यह भूकिमा दूसरे लोग निभा रहे हैं । उदारवादियों की कट्टरवादेयों से रक्षा कट्टरवादियों द्वारा ही होती है । उदारवादियों को उनको अपना समझकर अतिवाद से रोकना अवश्य चाहिए पर उनकी भूमिका को जानते हुए बहिष्कार नही करना चाहिए । निन्दनीय व्यक्ति और निन्दनीय कर्म की निन्दा अवश्य करनी चाहिए और उसे अवश्य रोकना चाहिए । इस तरह उदारवादियों को भी कट्टरवादियों की कुकर्म से रक्षा करनी चाहिए । ऐसे समावेशवादी ही अपने को हिन्दू समझने में सहज रहते हैं । सहज का मतलब कि जो हिन्दू समझकर उत्तेजित भी न हो और अपने पर शर्म भी न करे । इसको बड़े उदाहरण से ऐसे समझ सकते हैं कि हम देश के अन्दर अहिंसा की बात कर लेते हैं, मानवाधिकार वादी अपराधियों को आराम देने को विवश कर देते हैं, क्योंकि सीमा पर लाखों सैनिक सदा हिंसा को तैयार रहते हैं ।

कट्टरवादियों से रक्षा हम जैसे सीधे सादे लोग नहीं कर सकते । कश्मीरी पंडित बड़े सीधे साधे लोग होते हैं, वे बड़े आदर्श नागरिक समझे जाते हैं, बड़े उदारवादी । उनमें अगर खौलते खून वाले लोग होते तो उनकी यह दुर्दशा न होती जो आज है । अपने ही देश में शरणार्थी होकर रहना पड़ रहा है । अपने घर-ज़मीन मिलने की आशा पता नही कितने लोगों में बची होगी । हम खुद ऐसे नहीं बन सकते, यह वही कर सकते हैं जिनका यह स्वभाव है ।फिर मुद्दे पर । --- जो संगठन --- इसमें उस आम हिन्दू का भी दोष है जो अपने को हिन्दू कहता तो रहा पर अपने ही लिए रक्षा को हिंसक स्वभाव अपनाने वालों को उनके इस दुर्गुण के कारण घृणा करने लगे, और अपनेको उनसे श्रेष्ठ समझने लगे । उन्हें अतिवाद से रोकते पर अपनापन बनाए रखते तो क्यों अलग पहचान बनाने को प्रेरित होते ।

तीसरी टिप्पणी

मेरी तीसरी टिप्पणी में शायद मेरा मत तीसरा लगे, लोगों को भ्रम हो जाए कि मेरी विचारधारा क्या है, उसके लिए फिर से कहता हूँ कि मैं किसी विचारधारा की फ़ैक्ट्री में बना उत्पाद नहीं हूँ जो साँचे में ढला हुआ दिखूँ । कट्टरवादियों का मैं समर्थन नहीं करता । अगर हमारी भलाई के लिए भी वे अपराध करें तो भी मैं इस बात का समर्थन करूँगा कि उनको इस अपराध की सज़ा दी जाए । क्योंकि भावना के साथ न्याय-व्यवस्था भी बनाए रखनी है । लेकिन इनका अस्तित्व समाज में आवश्यक समझता हूँ यद्यपि मैं इनके साथ नहीं खड़ा होऊँगा कि मेरे स्वभाव से यह मेल नहीं खाता ।

हिन्दू धर्म सबसे उदार है - कह लीजिए कि खिचड़ी की तरह मुलायम कि बिना दाँत वाला भी खा ले । यहाँ मैं फिर विषयान्तर कर रहा हूँ । धर्म परिवर्तन के लिए हिन्दू धर्म ही सबसे सॉफ़्ट टारगेट है । हम जो अपनी निजी जिन्दगी, अपनी पढाई, अपनी नौकरी से ऊपर सिर नहीं उठा सकते, वे इस बात को देखते हुए भी रोक नहीं सकते । इंटेलेक्चुअल भी यदि तर्क और सबूत देकर रुकवाना चाहे तो वह भी दूसरे तर्कों और सबूतों से दबा दिया जाएगा और उनका योगदान अक्सर बेअसर रह जाता है । यहाँ भी उनका काम असर करता है जिन्हें हम अनुदार, कट्टरवादी, बिगड़ैल और गुण्डे कहते हैं, जो तर्कों में फँसने के बजाय सीधे काम करते हैं । उनकी अतिवादिता अवश्य शर्मनाक है जो घिनौने कृत्य वे इस प्रक्रिया में कर जाते हैं । इन्हें मुलायम खिचड़ी में कंकड़ समझिये जो स्वाद बिगाड़ देते हैं । पर खिचड़ी में कंकड़ होने पर लोग उसे खाने में डरने लगते हैं ।

7 comments:

Anonymous said...

अच्छी अच्छी बातें लिखी हैं आपने हिन्दूओं कि मानसिकता पर करारा व्यंग है...लिखने शैली बहुत बढ़िया है.... बहुत विचारणीय पोस्ट है...काश कुछ जागरूकता आ पाती.

दिवाकर मिश्र said...

वीरेन्द्र जी आप उल्टा समझे । यह व्यङ्ग्य नहीं है । यह उस बात को याद दिलाने की कोशिश है कि हिन्दू जैसा है वह वैसा क्यों है । कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी वाली कुछ बात क्या है- इसे पहचाना जाए और उसे पुष्ट किया जाए ।

Anonymous said...

I’m sorry if any wrong things I’ve said..my comment is not inteneed to heart any one..
but I strongly feel that religion is an opium ... What the world needs now is atheism..Humanity doesn't need any religion to explain our past/present/future.Scientific prediction and control of nature by scientific means certainly has a potential to replace religion as a means of controlling uncertainty in our lives .
I hope that one day all the humanity will unite under the flag of science..
As a student we need to promot this idea of atheism.. This is the only solution ..

दिवाकर मिश्र said...

आपकी टिप्पणी से हम हर्ट (heart/hurt) नहीं हुए । मेरा कहने का तात्पर्य यह था कि लोग वह समझें जो मैं अपनी बात से कहना चाहता हूँ । पर वे इससे सहमत, असहमत या उदासीन हो सकते हैं । विज्ञान धर्म को कभी प्रतिस्थापित नहीं कर पाएगा क्योंकि दोनों की भूमिकाएँ अलग अलग हैं । कोई चीज़ अपने जैसी चीज़ से ही प्रतिस्थापित हो सकती है । धर्म की ज्यादती तब हो जाती है जब विज्ञान की बात करने वालों को ज़हर देकर मार दिया जाता है । और विज्ञान की ज्यादती तब हो जाती है जब वह समझ लेता है कि जो वह देख नहीं सकता वह है ही नहीं और उसे मानने वालों को मूर्ख घोषित कर देता है ।

Anonymous said...

..keyboard of my PC is not working so I was forced to surf internet from my phone ...this phone has wierd automatic typing system..( I am unable to type in hindi in this nokia E63) While typing it aoutomatacly selects words on the basis of how frequently they have used..I used to write heart more frequently than hurt ..So this mistake is technical.. Typo

Itna to chalta hai bhai

दिवाकर मिश्र said...

to isme tension ki kya baat hai, mai bhi kahta hu ki itna to chalta hai. itna kya isse jyada jyada chalta hai.

Believer said...

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