हिन्द-युग्म: 28 दिसम्बर 2008 को हिन्द-युग्म मनाएगा वार्षिकोत्सव (मुख्य अतिथि- राजेन्द्र यादव)
जैसाकि हमने २७ अक्टूबर २००८ को उद्घोषणा की थी कि इस साल के अंत में हम चार पाठकों को 'हिन्द-युग्म पाठक सम्मान २००८' से सम्मानित करेंगे। यद्यपि यह सम्मान तो पिछले साल से ही दिया जा रहा है, लेकिन इस बार हमने तय किया था कि इस सम्मान को एक समारोह में चोटी के साहित्यकारों के हाथों दिलवायेंगे।तो मित्रो, हम उपस्थित उन चार पाठकों के नाम लेकर जिन्हें आने वाले २८ दिसम्बर के कार्यक्रम 'हिन्द-युग्म वार्षिकोत्सव २००८' में गणमान्य साहित्यकारों के हाथों यह पुरस्कार दिया जाना है। साथ में बहुत सी गतिविधियाँ और होंगी जिसकी रूपरेखा लेकर हम उपस्थित हुये हैं। वर्ष २००८ में जिन चार पाठकों ने हिन्द-युग्म को सबसे अधिक पढ़ा, वे हैं-आलोक सिंह 'साहिल' दीपाली मिश्रा पूजा अनिल, और सुमित भारद्वाज इन चारों पाठकों के हस्ताक्षर हिन्द-युग्म के सभी मंचों की अधिकाधिक प्रविष्टियों पर उपलब्ध हैं। उपर्युक्त चार पाठकों को २८ दिसम्बर २००८ को धर्मवीर संगोष्ठी कक्ष ( तृतीय तल, हिन्दी भवन, आई टी ओ, दिल्ली) में प्रशस्ति-पत्र, स्मृति चिह्न और पाँच-पाँच पुस्तकों का बंडल दिया जायेगा।जिन गणमान्य लोगों के सानिध्य में यह कार्यक्रम होगा, उनके नाम हैं-मुख्य अतिथि- राजेन्द्र यादव (प्रख्यात साहित्यकार तथा 'हंस' के संपादक)
Wednesday, December 17, 2008
Friday, December 5, 2008
आतंकवाद पर उलटा तीर की पोस्ट
आज बीए के छात्रों के ब्लॉग देखते हुए मुझे एक छात्र के ब्लॉग में टिपण्णी में अमित कुमार सागर जी के ब्लॉग का लिंक मिल गया । उस पर हमें यहाँ लेख मिला जो उन्होंने " शमा " जी के ब्लॉग पर से उद्धृत किया है इसे आप लोग अवश्य पढ़ें सम्पर्क सूत्र है - http://ultateer.blogspot.com/2008/11/blog-post_28.html
Tuesday, July 22, 2008
सहपाठिनां सह प्रथमतया साफल्येन गुहासु सम्मोदनम्
अथ काले गच्छति अहं सहपाठिनां सह कन्दराणाम् अन्वेषणाय कृतनिश्चयः आसम् । अतः पूर्वोक्तस्य दिनस्य सप्ताहं पश्चात् चत्वारः जनाः मध्याह्ने भोजनोपरान्ते गुहासु अन्वेषणं कर्तुं प्रस्थिताः । मया सह राकेशः, नीलमः, कल्पना च आसन् । यत्र अस्माभिः प्रथमा गुहा दृष्टा आसीत्, तत एव वयं प्रारम्भम् अकुर्म । अद्य जनवरीमासस्य सप्तमदिनांकः आसीत् । वयं सर्वे तस्यां गुहायां प्रविश्य आनन्दम् अन्वभवाम । किञ्चिदेव कालं स्थित्वा वयम् अन्याः कन्दराः अन्वेष्टुं प्रस्थिताः । कण्टकाकीर्णानि स्तम्बानि विचालयन्तः मार्गं कुर्वन्तः वयम् अपराः अपराः च गुहाः अपश्याम । अथ क्रमेण प्राचीनः निर्जलः एकः कूपः अपि दृष्टः । तस्य एव समीपे विशालाः विशालाः शिलाः भित्तीः निर्मायन् छदरहितं कक्षमिव स्थानं दर्शयन्त्यः आसन् । तत्र स्थानं सर्वतः उच्चप्रदेशेन आवेष्टितम् आसीत् । वयं भूतलात् अति नते स्थले आस्म । अग्रे गन्तुम् अस्माभिः उपरि गन्तव्यम् आसीत् परं तीक्ष्णप्रवणासु शिलासु आरोहन्तुं दुष्करम् आसीत् । अत्युच्चे तत्र एकः वटवृक्षः तटवर्ती आसीत् । तस्य मूलानि भित्तितः अवतीर्णानि आसन् । तान् एव अवलम्ब्य वयम् वयं चत्वारोऽपि आरुह्य उपरि गताः । ततः अग्रे गत्वा अन्याः अनेकान् गह्वरान् अन्वेषयन् तेषु च मनः आमोदयन् वयं अति स्रस्ता भूत्वा गुहावल्याः अन्तं यावत् विश्वविद्यालयस्य दक्षिणां सीमां प्राप्ताः । ततः पुनः प्रवणासु शिलासु एकेन निम्बवृक्षेण बद्धया टायरशृंखलया आरूह्य विश्वविद्यलयात् बहिः वसन्तकुंजं अगच्छाम । ततः बहिः बहिः भ्रमन्तः वयम् विश्वविद्यालयस्य पश्चिमद्वारात् प्रविश्य स्वेषु स्वेषु छात्रावासेषु गतवन्तः ।
Thursday, January 24, 2008
अन्तःसंस्थान क्रिकेट प्रतियोगिता में पहली जीत
२१ जनवरी २००८ से ३० जनवरी २००८ तक के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अन्तःसंस्थान क्रिकेट प्रतियोगिता आयोजित हो रही है । तीन समूहों में सभी संस्थानों और केन्द्रों की १० टीमों को बाँटा गया है । हमारे समूह में तीन टीमें हैं- पर्यावरण विज्ञान संस्थान, हमारा विशिष्ट संस्कृत अध्ययन केन्द्र और कला एवं सौन्दर्यशास्त्र संस्थान । कल पूर्वाह्न में पर्यावरण विज्ञान संस्थान से हुए मैच में हमारी टीम हार गई थी परन्तु आज कला एवं सौन्दर्यशास्त्र संस्थान पर हमने सात विकेट से जीत दर्ज करके पहली जीत पाई है । हमारे केन्द्र की ओर से जीतने वाली टीम का सदस्य और जीत का सहभागी होने की खुशी है ।
मैन ऑफ़ द मैच का स्थान एम ए प्रथम वर्ष के छात्र रजनीश कुमार पाण्डेय को मिला । उन्होंने २३ गेंदों पर सात चौके लगाकर ३७ रन बनाए और अविजित रहे । नीरज ने १६ (अविजित), महेन्द्र ने १४, वेद प्रकाश जी ने ४ और बलदेव ने ० रन बनाए । जीत के समय दसवाँ ओवर चल रहा था और छः ओवर बाकी थे । गेंदबाजी में महेन्द्र ने २ विकेट लिए और उनकी गेंद पर २ रन आउट हुए । पूरन ने २ विकेट लिए । बाकी चार विकेट नीरज और बलदेव ने लिए (हालाँकि यह विवरण ठीक से याद नहीं) । आलोक को यद्यपि कोई विकेट नहीं मिला परन्तु अच्छी गेंदबाजी करते हुए उन्होंने तीन ओवर में मात्र बारह रन दिए । पिछले वर्ष इन्हीं आलोक ने तीन ओवर में ही सोलह रन देकर तीन विकेट भी लिए थे ।
हमारे विशिष्ट संस्कृत अध्ययन केन्द्र की स्थापना सन् २००० में हुई । इस साल से पहले चार टूर्नामेण्ट हमारी टीम खेली है । उनमें हमें किसी में भी जीत नहीं मिल पाई थी । एम ए का पहला बैच २००३ में आया और २००३-४ के टूर्नामेण्ट में हमारी टीम पहली बार खेली थी । उसके अगले वर्ष २००४-५ में (जो हमारे बैच का पहला सत्र था) इस केन्द्र की टीम ने भाषा संस्थान (एस एल) से ड्रॉ खेला था । यही अब तक का सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड था । उस बार हमारी टीम ने १३४ रन बनाए थे । इस जीत को दर्ज करके हमारे जीतने की शुरुआत हुई है । यद्यपि सेमीफाइनल में हम नहीं पहुँच पाए हैं पर आगे यह जीत का सिलसिला जारी रखने के लिए आप सभी की शुभकामनाएँ हमारे साथ हैं ।
मैन ऑफ़ द मैच का स्थान एम ए प्रथम वर्ष के छात्र रजनीश कुमार पाण्डेय को मिला । उन्होंने २३ गेंदों पर सात चौके लगाकर ३७ रन बनाए और अविजित रहे । नीरज ने १६ (अविजित), महेन्द्र ने १४, वेद प्रकाश जी ने ४ और बलदेव ने ० रन बनाए । जीत के समय दसवाँ ओवर चल रहा था और छः ओवर बाकी थे । गेंदबाजी में महेन्द्र ने २ विकेट लिए और उनकी गेंद पर २ रन आउट हुए । पूरन ने २ विकेट लिए । बाकी चार विकेट नीरज और बलदेव ने लिए (हालाँकि यह विवरण ठीक से याद नहीं) । आलोक को यद्यपि कोई विकेट नहीं मिला परन्तु अच्छी गेंदबाजी करते हुए उन्होंने तीन ओवर में मात्र बारह रन दिए । पिछले वर्ष इन्हीं आलोक ने तीन ओवर में ही सोलह रन देकर तीन विकेट भी लिए थे ।
हमारे विशिष्ट संस्कृत अध्ययन केन्द्र की स्थापना सन् २००० में हुई । इस साल से पहले चार टूर्नामेण्ट हमारी टीम खेली है । उनमें हमें किसी में भी जीत नहीं मिल पाई थी । एम ए का पहला बैच २००३ में आया और २००३-४ के टूर्नामेण्ट में हमारी टीम पहली बार खेली थी । उसके अगले वर्ष २००४-५ में (जो हमारे बैच का पहला सत्र था) इस केन्द्र की टीम ने भाषा संस्थान (एस एल) से ड्रॉ खेला था । यही अब तक का सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड था । उस बार हमारी टीम ने १३४ रन बनाए थे । इस जीत को दर्ज करके हमारे जीतने की शुरुआत हुई है । यद्यपि सेमीफाइनल में हम नहीं पहुँच पाए हैं पर आगे यह जीत का सिलसिला जारी रखने के लिए आप सभी की शुभकामनाएँ हमारे साथ हैं ।
Wednesday, January 9, 2008
गुफान्वेषणक्रमे प्रथमकन्दराप्राप्तिः
वयं कन्दरान्वेषणोत्सुकाः जनैः जनैः पृष्टवन्तः कुत्र कन्दराः, कुतः केन, मार्गेण, कस्यां दिशि ताः प्राप्तव्याः इति, क्वचित् क्वचित् उत्तरं प्राप्यते स्म । कतिपयदिनेषु यावत् न कोऽपि प्राप्तः यः कथयेत् यत् अहं तत्र गतवान्, तासां मार्गं जानामि इत्यादिः । कोऽपि कथयेत् संस्कृतकेन्द्रस्ये पश्च ताः सन्ति, कोऽपि कथयेत् अकादमिक-स्टॉफकालेजस्य पार्श्वात् मार्गः गच्छति । २००४ ईसवीयसत्रस्य समाप्तौ लखनऊविश्वविद्यालयस्य द्वौ सहपाठिनौ अस्माकं पार्श्वे आयातौ । एकदा तौ द्वौ- विवेकः हनुमानप्रसादपाण्डेयः च, सुरजीतः अहं च निश्चयं कृत्वा दक्षिणवने कन्दरान्वेषणाय प्रस्थिताः । तत्र गच्छन्तः वयं विशालाः विशालाः शिलाः दृष्ट्वा तत्र गुफा सम्भवति इति अनुमीय अनुमीय अत्र तत्र अपश्याम । एकत्र गत्वा लघुकूपाकारः गह्वरः प्राप्तः । मम तु प्रसन्नता आशा च अत्यधिकं वर्द्धिता । तं लघुगह्वरं दृष्ट्वा हनुमानप्रसादः उपेक्षता अवदत् "ई गुफा ह ?" तस्य उपेक्षा मां न अरुचत् । मन्ये अत्र अजन्ता-एलोरा इव विशालाः कन्दराः न सन्ति, कथं कोऽपि मम विश्वविद्यालयस्य लघुकन्दरान् उपेक्ष्यति ? विवेकः अरुचिं स्रस्तं चानुभवति स्म । तदा तत्र त्रयः लघुबालकाः वने एव आमोदं कुर्वन् तत्र आगताः । ते अबोधयन् यत् अत्र कन्दराः सन्ति याः कक्षपरिमाणा अपि सन्ति । तेषां वचनं श्रुत्वा हनुमानप्रसादः विश्वासमकरोत् यत् अत्र सत्यमेव कन्दराः सन्ति । ते बालकाः तत्र समीपमेव एकां कन्दरां अस्मान् प्रादर्शयन् तस्यां प्राविशन् च । विवेकस्य अरुचिं दृष्ट्वा अन्यस्मिन् दिने विस्तरेण गुफान्वेषणं करिष्याम इति निश्चीय वयं न्यवर्तयम् ।
अन्यस्मिन् दिने किं अभवत्......... अग्रे कथयिष्यामः........नमस्कारः.......
अन्यस्मिन् दिने किं अभवत्......... अग्रे कथयिष्यामः........नमस्कारः.......
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